शिव की महिमा से ओतप्रोत, बाह में प्रचलित एक जकड़ी भजन में "भदावर के शाहजहाँ" बदन सिंह जू देव का वर्णन है :- आजु सभा के बीच मनाये रहे, बाबा बटेश्वर वारे कौं शिव शंकर डमरू वारे कौं, नेक ज्ञान दियो अपने जनु को नेक ज्ञान दियो अपने जनु कों । न बुद्धि है मेरे तन को, न बुद्धि है मेरे तन को । आजु सभा के बीच मनाये रहे बाबा बटेश्वर वाले को शिव शंकर डमरू वारे कौं एक कन्या जल में कूद गयी, जब बीच धार में आयी गयी, तब बीच धार - में आयी गयी, तब पुत्र - पुत्र कर नाथ उबारो डूबते वंश हमारे कौं शिव शंकर डमरू वारे कौं, हम आजु सभा के बीच मनाये रहे, बाबा बटेश्वर वारे कौ, शिव शंकर डमरू वारे कौं, फिर बदन सिंह वे कहलाये, फिर बदन सिंह वे कहलाये, सुंदर मंदिर उन्नै बनवाये फिर सुंदर मंदिर उन्नै बनवाये फिर गिरिजा पथ पर उछारों तीर्थधाम तिहारे शिव शंकर डमरू वारे कौं, हम आजु सभा के बीच मनाये रहे, बाबा बटेश्वर वारे कौं, शिव शंकर डमरू वारे कौं, । यह भजन मात्र श्रद्धा-भक्ति की भावना से युक्त गाथा ही नहीं हैं, इसमें ऐतिहासिक सत्य भी छिपा है ।