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जनवरी, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

किंवदंति : लिंग परिवर्तन

हम जानते हैं कि लिंग परिवर्तन की किंवदंति भारतीय लोक कथाओं में अज्ञात नहीं हैं । हमे एक बहुत प्राचीन कथा का समरण हो आता है । ये कथा "इला" की है जो की वैवस्वत-मनु की पुत्री थी । वैवस्वत-मनु ने वरुण भगवान से पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना की,पर उनके एक पुर्त्री का जनम हुआ, क्यों की वैवस्वत-मनु की पत्नी पुत्री चाहती थी,पिता की देवताओं से प्रार्थना के परिणामस्वरूप वह पुत्री, एक पुरुष "सुद्युम्ना" में बदल गई थी और अंत में भगवन शिव उसे फिर से एक स्त्री में बदल दिया और वह उसी रूप में बुद्ध (बुद्धि) की पत्नी बन गई थी । आधुनिक समय में हमें भदावर के भदौरिया राजा की बेटी की बहुत इसी तरह की कहानी सुनने को मिलती है. महाराजा भदावर बदन सिंह भदौरिया और तत्कालीन राजा परमार के साथ घनिष्ठ मित्रता थी । जब उनकी रानियो ने गर्भ धारण किया तब दोनो के बीच समझौता हुआ कि जिसके भी कन्या होगी,वह दूसरे के पुत्र से शादी करेगा, राजा परमार और राजा भदावर दोनो के ही कन्या पैदा हो गई पर राजा भदावर ने अपना वचन पूरा करने के लिए राजा परमार को सूचित कर दिया कि उनके पुत्र पैदा हुआ है । उनकी झूठी

चावल किवदंति !

बटेश्वर मंदिर स्थानीय लोगों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वे सरल ग्रामीण है और उनका इन मंदिरों से जुडी कई अविश्वसनीय किवदंतियों पर विश्वास है। स्थानीय राजपरिवारो में होड़ रहती थी भदावर के राजा भी अपने परंपरागत तीर्थ बटेश्वरनाथ महादेव पर चावल चढ़ाया करते थे। एक बार गोहद के राणा २१ मन चावल से बटेश्वर शिवलिंग को न ढक सके , उसे भदौरिया राजा ने ७ मन चावल से ही ढक दिया था । ऐसा कहा जाता है की राज - परिवार की प्रमुख महिला वर्ष भर एक - एक चावल को शिव प्रार्थना माला के मनकों की भांति इस्तेमाल करती थी और अनाज की बोरी में जमा करती रहती थी जो राजपरिवार इन चावलों से बटेश्वर शिवलिंग को ढक पता था वो ही क्षेत्र के सबसे धर्मपरायण स्त्री का स्वामी होने का दावा कर सकता था। निश्चित ही ये प्रथा स्त्रीयों को साल भर व्यस्त रखने की उक्ति रही होगी। स्थानीय रूप से चावल उगाया नहीं जाता था और महंगा था , किसी चतुर कर पंडित द्वारा इस छोटे से परीक्षण के द्वारा बेहतरीन अनाज की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करली गयी थी। जब औरंगजेब मंदिरों का विनाश करता व मस्जिद बनता हुआ बटेश्वर आया तो यहाँ के कुछ मंदिर नष्ट कर