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जकड़ी भजन : भदावर शिव की महिमा

शिव की महिमा से ओतप्रोत, बाह में प्रचलित एक जकड़ी भजन में  "भदावर के शाहजहाँ" बदन सिंह जू देव का वर्णन है :- आजु सभा के बीच मनाये रहे, बाबा बटेश्वर वारे कौं शिव शंकर डमरू वारे कौं, नेक ज्ञान दियो अपने जनु को नेक ज्ञान दियो अपने जनु कों । न बुद्धि है मेरे तन को, न बुद्धि है मेरे तन को । आजु सभा के बीच मनाये रहे बाबा बटेश्वर वाले को शिव शंकर डमरू वारे कौं एक कन्या जल में कूद गयी, जब बीच धार में आयी गयी, तब बीच धार - में आयी गयी, तब पुत्र - पुत्र कर नाथ उबारो डूबते वंश हमारे कौं शिव शंकर डमरू वारे कौं, हम आजु सभा के बीच मनाये रहे, बाबा बटेश्वर वारे कौ, शिव शंकर डमरू वारे कौं, फिर बदन सिंह वे कहलाये, फिर बदन सिंह वे कहलाये,  सुंदर मंदिर उन्नै बनवाये फिर सुंदर मंदिर उन्नै बनवाये फिर गिरिजा पथ पर उछारों तीर्थधाम तिहारे शिव शंकर डमरू वारे कौं, हम आजु सभा के बीच मनाये रहे, बाबा बटेश्वर वारे कौं, शिव शंकर डमरू वारे कौं, । यह भजन मात्र श्रद्धा-भक्ति की भावना से युक्त गाथा ही नहीं हैं, इसमें ऐतिहासिक सत्य भी छिपा है । 
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पर्युषण पर्व : जैन पर्व का महत्व और इतिहास

पर्युषण पर्व 2021: जैन पर्व का महत्व और इतिहास पर्युषण पर्व प्रमुख जैन त्योहारों में से एक है जो हर साल अगस्त-सितंबर के महीने में मनाया जाता है। इस वर्ष यह 4 सितंबर से 11 सितंबर 2021 तक मनाया जा रहा है। यह मूल रूप से भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। संक्षेप में यह त्योहार जैन समुदाय के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि मुसलमान के लिए ईद और हिन्दू के लिए दीवाली। आइए इस त्योहार और इसके महत्व के बारे में और जानेंगे। Shri Digamber Jain Temple Shauripur पर्युषण पर्व 2021 तिथि  इस वर्ष पर्युषण पर्व 04 सितंबर से 11 सितंबर 2021 तक मनाया जा रहा है। भाद्रपद यानी भादो मास की पंचमी तिथि को शुरू होने वाला यह पर्व अनंत चतुर्दशी तिथि तक मनाया जाता है।  पर्युषण पर्व क्या है? पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है  "परि" यानी चारों ओर से और "उषण" यानी धर्म की आराधना। यह पर्व महावीर के मूलभूत सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म या कहें  जिओ और जीने दो सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है। जैन श्वेतांबर और दिगंबर समाज के पर्युषण पर्व भाद्रपद मास में मनाए जाते हैं। श्वेतांबर के व्रत स

Vitamin B9 Folic Acid: फोलिक एसिड शरीर के लिए जरूरी क्यों हैं? जानिए इसके प्राकृतिक स्रोत क्या हैं?

Vitamin B9 Folic Acid: फोलिक एसिड शरीर  के लिए  जरूरी क्यों हैं? जानिए इसके प्राकृतिक स्रोत क्या हैं? Vitamin B9 (Folic Acid): विटामिन बी9 यानि फोलिक एसिड शरीर को हेल्दी रखने के लिए बहुत जरूरी है।  फोलिस एसिड की कमी को आप कई प्राकृतिक खाद्य पदार्थों से पूरा कर सकते हैं।  Vitamin B9 Folic Acid For Health: शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विटामिन बी9 यानि फोलिस एसिड बहुत जरूरी है। अगर शरीर में फोलिक एसिड की कमी हो जाए तो इससे  शरीर की इम्मुनिटी कमजोर हो जाती है।आप जल्दी बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं। फोलिक एसिड शरीर के लिए  बहुत जरूरी पोषक तत्वों में से एक है। फोलिक एसिड को विटामिन-बी के नाम से भी जानते हैं।  Folate Folic Acid Vitamin B9 बालों को सुंदर बनाने और गर्भावस्था में शिशु के सही विकास के लिए फोलिक एसिड बहुत जरूरी है। इसके अलावा पुरुषों में फर्टिलिटी बढ़ाने, कैंसर जैसी गंभीर समस्या को दूर रखने और स्ट्रेस को कम करने में भी फोलिक एसिड मदद करता है। जानते हैं विटामिन बी9 की कमी होने पर आप के शरीर में क्या लक्षण नज़र आते हैं और आप कैसे खाने-पीने से इसकी कमी को पूरा किया जा सकता है।  विटा

बटेश्वर धाम : भौमवती अमावस्या कब है?

भौमवती अमावस्या कब है? अमावस्या ( Bhaumvati Amavasya )  का दिन हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। यह वह दिन है जिस दिन चंद्रमा पूरी तरह से दिखाई नहीं देता है। बटेश्वर धाम में अमावस्या के दिन भगवान बाबा बटेश्वर नाथ शिव की पूजा की जाती है। भौमवती अमावस्या मंगलवार, 07 सितंबर 2021 को है। सरल शब्दों में यदि अमावस्या का दिन मंगलवार को पड़े तो उस अमावस्या को भौमवती अमावस्या कहा जाता है। भौमवती अमावस्या को 'भौम्य अमावस्या' या 'भोमवती अमावस्या' के नाम से भी जाना जाता है। भदावर की काशी बटेश्वर धाम में यमुना किनारे शिव के 108 मंदिर परिसर में भौमवती अमावस्या पर पितरों को प्रसन्न करने के लिए जन समुदाय उमड़ पड़ता हैं।  भौमवती अमावस्या - भदावर की काशी बटेश्वर धाम  भौमवती अमावस्या का महत्व ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगलवार के दिन जब चंद्रमा और सूर्य एक ही राशि राशि में प्रवेश करते हैं तो भौमवती अमावस्या योग बन जाता है। मान्यता है कि इस दिन पितरों की पूजा की जाती है।भौमवती अमावस्या के दिन बटेश्वर धाम में स्नान, दान और उपवास का विशेष महत्व है। मान्यता हैं की इस दिन बटेश्वर में यमुना स्नान

शौरीपुर का इतिहास-तीर्थंकर नेमिनाथ जन्मभूमि - दिगंबर जैन मंदिर

शौरीपुर का इतिहास-तीर्थंकर नेमिनाथ जन्मभूमि शौरीपुर बटेश्वर का श्री नेमिनाथ जैन मंदिर जैनधर्म का एक पवित्र सिद्धपीठ तीर्थ है। यह जैनधर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की जन्म स्थली है। शौरीपुर बटेश्वर में माता शिवादेवी और पिता समुद्रविजय से श्रावण शुक्ला षष्ठी में भगवान श्री नेमिनाथ जी उत्पन्न हुए थे। शौरीपुर बटेश्वर धाम से 04 किमी की दूरी पर यमुना किनारे बीहड़ में स्थित है। बटेश्वर धाम हिन्दू धर्म का प्रसिद्ध शिव तीर्थ होने के साथ ही अतिशय क्षेत्र भी है। बटेश्वर धाम में भगवान शिव के 108 मंदिर है। लेकिन अपने इस लेख में हम जैनतीर्थ शौरीपुर के बारे में ही बात करेंगे।  शौरीपुर में भगवान श्री नेमिनाथ का दिगंबर जैन मंदिर है। जैन समुदाय में इस स्थान का बहुत बड़ा महत्व है। बडी संख्या में यहां जैन श्रृद्धालु वर्ष भर यहाँ आते रहते है। श्री दिगंबर जैन मंदिर शौरिपुर शौरीपुर जैन तीर्थ का महत्व राजा समुद्रविजय की रानी शिवादेवी के गर्भ से श्रावण सुदी 06 को इस शौरीपुर बटेश्वर की इस पवित्र धरा पर भगवान श्री  नेमिनाथ जिनेन्द्र 22वें तीर्थंकर का जन्म हुआ था। उनके जन्म के समय इंद्र ने रत्नों की वर्षा की

बटेश्वर धाम से गहरा नाता है कृष्ण कन्हैया का !

बटेश्वर धाम से गहरा नाता है कृष्ण कन्हैया का ! तीर्थों का भांजा कहे जाने वाले बटेश्वर से कृष्ण कन्हैया का गहरा नाता रहा है। यमुना नदी के तट पर बसे इस तीर्थ स्थल की महाभारत काल में भी मुख्य भूमिका रही है। कुंती व कर्ण ने यहां प्रवास किया था, वहीं पांडवों ने अज्ञातवास का कुछ समय यहां बिताया था। बटेश्वर, में श्रीकृष्ण और उनके पूर्वजों के अनेक चिन्ह मिलते हैं । बटेश्वर धाम ब्रज मंडल का ही भाग है और 84 कोस की परिक्रमा में इसका समावेश है।  बटेश्वर तीर्थों का भांजा क्यों है ? श्री कृष्ण के पिता वसुदेव की जन्मभूमि शौरीपुर बटेश्वर मानी जाती है। शौरीपुर का इतिहास में मथुरा के राजा अहुक के दो पुत्रों में जब राज्य बटा तो उग्रसेन को मथुरा मंडल और देवाक को शूरसैन मंडल मिले, उग्रसेन के सात पुत्र हुए जिनमें जेष्ठ कंस था। अहुक के सात पुत्री हुई जिनमें जेष्ठ देवकी थीं  कंस और देवकी दोनों चचेरे भाई बहन में बहुत प्रेम था। बटेश्वर में के शूरसैन के पुत्र वासुदेव की कंस से घनिष्ट मित्रता थी। कालांतर में कंस ने देवकी का विवाह अपने मित्र वासुदेव से किया और फिर आकाशवाणी और आगे कंस कारागार में कृष्ण जनम की कथा स

बटेश्वर कार्तिक पूर्णिमा

बटेश्वर कार्तिक पूर्णिमा   कार्तिक हिंदू कैलेंडर में आठवां चंद्र माह है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। बटेश्वर क्षेत्र के आधार पर,  वैष्णव परंपरा में कार्तिक मास को दामोदर मास के नाम से जाना जाता है। दामोदर भगवान कृष्ण के नामों में से एक है।हिंदू कैलेंडर में, कार्तिक सभी चंद्र महीनों में सबसे पवित्र महीना है। कई लोग कार्तिक महीने के दौरान हर दिन सूर्योदय से पहले गंगा और अन्य पवित्र नदियों में पवित्र डुबकी लगाने का संकल्प लेते हैं। कार्तिक माह के दौरान पवित्र डुबकी की रस्म शरद पूर्णिमा के दिन शुरू होती है और कार्तिक पूर्णिमा पर समाप्त होती है।  बटेश्वर पूनम कब की है? हिंदू कैलेंडर में पूर्णिमा के दिन को पूर्णिमा, पूनो, पूनम, पूर्णमी और पूर्णिमासी के रूप में भी जाना जाता है। बटेश्वर पूनम कब की है? बटेश्वर पूनो से तात्पर्य कार्तिक पूर्णिमा से है बटेश्वर पूर्णिमा 2021, 19 नवंबर शुक्रवार की है और बटेश्वर पूर्णिमा 2022, 08  नवंबर मंगलवार की है  कार्तिक पूर्णिमा का क्या महत्व है? बटेश्वर में कार्तिक पूर्णिमा स्नान का बहुत महत्वा है क्योंकि कार्तिक पूर्णिम

शिव कौन है?

शिव कौन है? हिंदू त्रिदेव में शिव तीसरे देवता हैं। त्रिमूर्ति में तीन देवता शामिल हैं जो दुनिया के निर्माण, रखरखाव और विनाश के लिए जिम्मेदार हैं। अन्य दो देवता ब्रह्मा और विष्णु हैं। ब्रह्मा ब्रह्मांड के निर्माता हैं जबकि विष्णु इसके संरक्षक हैं। शिव की भूमिका ब्रह्मांड को पुनःनिर्माण के लिए नष्ट करना है। हिंदुओं का मानना ​​​​है कि विनाश और पुनःनिर्माण की उनकी शक्तियों का उपयोग अब भी इस दुनिया के भ्रम और अपूर्णताओं को नष्ट करने के लिए किया जाता है, जिससे लाभकारी परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त होता है। हिंदू मान्यता के अनुसार यह विनाश मनमाना नहीं बल्कि रचनात्मक है। इसलिए शिव को अच्छे और बुरे दोनों के स्रोत के रूप में देखा जाता है और उन्हें कई विरोधाभासी तत्वों को जोड़ने वाला माना जाता है। शिव को अदम्य जुनून के लिए जाना जाता है, जो उन्हें व्यवहार को चरम पर ले जाता है। कभी-कभी वह एक तपस्वी होते हैं, सभी सांसारिक सुखों से दूर रहते  हैं। पर वास्तविकता में वह एक सुखवादी है और उनकी पत्नी पार्वती के साथ संबंध उनमें एक संतुलन लाता है। उनका मिलन उन्हें एक तपस्वी और प्रेमी होने की अनुमति तो देता है ले

देवशयनी एकादशी

धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा - हे केशव ! आषाढ़ शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत को करने की विधि क्या है और किस देवता की पूजा की जाती है? श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! मैं आपको वही कहानी सुनाऊंगा जो ब्रह्माजी ने नारदजी को सुनाई थी। एक बार नरजी ने यह प्रश्न ब्रह्माजी से पूछा था। तब ब्रह्माजी ने उत्तर दिया कि हे नारद, आपने कलियुग के जीवों के उद्धार के लिए बहुत अच्छा प्रश्न पूछा है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और इस व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, जो लोग इस व्रत को नहीं करते हैं, वे नरक में जाते हैं। क्योंकि देवशयनी एकादशी का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ है। अब मैं आपको एक किवदंती सुनाता हूं, ध्यान से सुनिए। सूर्यवंश में एक चक्रवर्ती, सत्यवादी और महान प्रतापी राजा मान्धाता थे, वे पुत्र की भाँति अपनी प्रजा का पालन करते थे। उसकी सभी प्रजा धनी और सुखी थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ा। एक बार की बात है उस राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ा। भोजन की कमी से लोग बहुत दुखी हो गए। भोजन की अनुपलब्धता के कारण राज्य में बलि भी बंद कर दी गई थी। एक

आगरा से परे - यमुना और मंदिरों के प्राचीन शहर बटेश्वर के दर्शन

आगरा समीप एक छोटे से गांव में जो बेमिसाल शांति समृद्ध आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभूति में डूबा हुआ है? आगरा से 70 किमी दूर बटेश्वर नामक स्थान पर सप्तहांत की छुट्टी में आप जा सकते है। Bateshwar River Yamuna and Shiva Temples बटेश्वर की पृष्ठभूमि क्या है ? बटेश्वर एक शिव मंदिरों का गांव  है, जो यमुना नदी के तट पर स्थित है। बटेश्वरनाथ  भगवान शिव का दूसरा नाम है जो इस पवित्र गांव  के पीठासीन देवता हैं। किसी जमाने में इस गांव  में करीब 101 मंदिर थे। हालांकि, समय बीतने के साथ केवल 42 ही रह गए हैं । लगभग 400 वर्ष पूर्व भदावर वंश के प्रसिद्ध राजा बदन सिंह माई से बटेश्वर आये और उन्होंने ही बटेश्वर कई मंदिरों का निर्माण करवाया था। इस ऐतिहासिक गांव का उल्लेख हिंदू धर्मग्रंथों जैसे मत्स्य पुराण, रामायण, महाभारत और यहां तक ​​कि जैन पवित्र ग्रंथों में भी मिलता है। बटेश्वर कई मंदिरों से युक्त अपने नदी घाटों के लिए आंखों के लिए एक दावत है। इन मंदिरों में से कई में पारंपरिक वनस्पति रंगों से चित्रित सुंदर भित्तिचित्रों को बरकरार रखा है। बटेश्वर की यात्रा में चंबल के बेहड़ी टीलों से गुजरना शामिल है जो मा

बटेश्वर जन-श्रुतिया व किवदंतिया

बटेश्वर में यमुना के बीहड़ चम्बल की खूंखार घाटियों से गले मिलती सी प्रतीत होती है भदावर में लोकविश्वास है की सभी तीर्थो की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती, जब तक की बटेश्वर में पूजा का जल न चढ़ाया जाए। आदि काल से ही बटेश्वर शिव तीर्थ रहा है 'गर्गसहिंता' में कहा गया है की श्रावण-शुक्ला और महाशिवरात्रि पर यमुना स्नान करने पर अक्षय पुण्य मिलता है बटेश्वर में मोक्षदायिनी यमुना किनारे-किनारे १०१ मंदिर अर्धचन्द्राकार रूप में यमुना  मैय्या के प्रवाह को मोड़ते है ।  ये अद्भुत मंदिर अतीत की कितनी ही अनकही दास्ताने, मिथक, जन-श्रुतिया व किवदंतिया अपने सीने में सजोये भविष्य की ओर बाहें फेलाए खड़े है । अकबर के समय में यहाँ भदौरिया राजपूत राज्य करते थे। कहा जाता है कि एक बार राजा बदनसिंह जो भदावर के तत्कालीन शासक थे, मुग़ल दरबार में उपस्थित थे तो उन्होने अकबर को बटेश्वर के बीहड़ो में शिकार पर आने का निमंत्रण दिया पर अकबर को मार्ग परिचय देते समय उनसे भूल हो गई, वे यह कह गए कि आगरे से बटेश्वर पहुँचने में यमुना को नहीं पार करना पड़ता, उन्होंने बटेश्वर को यमुना के बाये किनारे बता दिया, जो वस्तु स्थिति क

उत्तर प्रदेश की छोटी काशी - Bateshwar River Front

हर साल, अक्टूबर-नवंबर के दौरान बटेश्वर का ग्रामीण क्षेत्र दिवाली से पहले जीवंत हो जाता है, जब भारत के दूसरे सबसे बड़े पशु मेले का आयोजन करता है। यहां यमुना के तट पर 101 शिव मंदिरों के कारण स्थानीय लोगों के बीच  उत्तर प्रदेश की छोटी काशी के रूप में जाना जाता है, आगरा जिले के बटेश्वर शहर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग बढ़ रही है। Bah Bateshwar River Front - Bateshwar.blogspot.com बटेश्वर एक तीर्थस्थल  है और पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी का पैतृक गांव जो चंबल के बीहड़ों से घिरा हुआ है और ये कभी डकैत गिरोहों के लिए कुख्यात था। बटेश्वर, आगरा शहर में ताजमहल से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शहर के कुछ प्रसिद्ध निवासियों का कहना है कि बटेश्वर में लंबे यमुना रिवरफ्रंट के विकास और भारत के सांस्कृतिक इतिहास में बटेश्वर के महत्व को उजागर करने से इसे पर्यटन मानचित्र पर प्रमुखता से रखने में मदद मिलेगी। उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री राजा महेंद्र अरिदमन सिंह, जो भदावर शाही परिवार से हैं, ने हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर रिवरफ्रंट क

शिव स्तुति : अनिल कटारा

काल के भी काल शंभु रूप विकराल है देह में भभूति लेप कंठ माल ब्याल है | शीश गंग भाल चन्द्र हाथ में त्रिशूल है डमरू निनाद सृष्टि नाद ब्रह्म रूप है | | तीन नेत्र तेज पुंज आदि शक्ति संग है आक हो धतूर बेर भंग भी पसन्द है | क्रोध ज्वाल भस्म होत देवता अनंग है आदि अन्त मध्य हीन दिव्य देव अनंत है | | बेल पत्र पुष्प दूब क्षुद्र भेंट लेत हैं प्रात होत नाम लेत कष्ट काट देत हैं | शीघ्र ही प्रसन्न होत शंभु जग रूप हैं दुष्ट को विनाश कर शान्ति का सरूप हैं | | नाथ मैं अनाथ प्रभु दु:ख दूर कीजिये कंट कीर्ण मार्ग नाथ क्लेश हर लीजिऐ | तेज पुंज आप संग शक्ति मात लीजिऐ अनिल दीन भाग्य हीन हाथ थाम लीजिऐ | | अनिल कटारा बाह, आगरा

बटेश्वर में आस्था का केंद्र है ऊखल

काशी काली काल बटेश्वरम। कालिंजर महाकाल उक्खला नव प्रकीत्र्यु: ।। बौद्ध ग्रंथ अवदान कल्पता में देश के जिन नौ ऊखल क्षेत्रों का उल्लेख किया गया है। उनमें से दो बृज की काशी बटेश्वर में होने से तीर्थ श्रद्घालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। साहित्यकार डॉ. बीपी मिश्र कहते है कि बटेश्वर में दो ऊखल क्षेत्र उत्तर और दक्षिण में हैं। (ऊखल क्षेत्र में प्रलय काल में धरती से स्वत: ही जल की धारा फूटती है। बटेश्वर में आज भी 10 से 15 हाथ की गहराई पर भूगर्भ जल मौजूद है।)  देश के नौ ऊखल क्षेत्रों में से दो ऊखल क्षेत्र बटेश्वर में होने के कारण इस तीर्थ का महत्व और भी बढ़ जाता है। जानकार लोग बताते हैं कि पूरे भारत वर्ष में महाकाल (उज्जैन) रेणुका, शुकूर, कालो, काली, कालींजर, काशी और बटेश्वर सहित नौ ऊखल क्षेत्र हैं अगर साहित्यकारों की बात पर यकीन करें तो बटेश्वर के दक्षिण व उत्तर क्षेत्र में दो ऊखल क्षेत्र हैं बताते हैं कि प्रलयकाल के दौरान पृथ्वी से स्वत: ही जल का निकास होता है। इसी के कारण बटेश्वर में भूगर्भ जल 20 से 25 फीट की गहराई पर मिल जाता है। इसी महत्व के चलते बटेश्वर को सभी तीर्थो का भांजा कहा जा

बटेश्वर पशु मेला भारत का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है।

भारत में मेलों के इतिहास का पता लगाते हुए हर कोई सहज रूप से बटेश्वर की ओर ही आकर्षित होता है। बटेश्वर यमुना किनारे एक प्राचीन और पौराणिक गांव रहा है, यहाँ बटेश्वर नाथ शिव के 108 मंदिर परिसर यमुना किनारे बना हुआ हैं।  बटेश्वर धाम  जो रामायण और महाभारत के नायकों से जुड़ा रहा है, कृष्ण के पिता वासुदेव के राज्य की राजधानी शौरिपुर यहाँ रही थी। जैनियों का मानना है कि नेमिनाथ का जन्म बटेश्वर में हुआ था। हाल के दिनों में बटेश्वर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पैतृक गांव के रूप में जाना जाने लगा है। बटेश्वर मेला 300 ईसा पूर्व का है जब मौर्यों ने देश पर शासन किया था और परिवहन मुख्य रूप से जलमार्गों के माध्यम से होता था। बटेश्वर व्यापार का एक प्रमुख स्थान था और पशु व्यापार के एक प्रमुख बाजार के रूप में उभरा था। यहां तक कि ब्रिटिश सेना भी उच्च गुणवत्ता वाले घोड़े खरीदने के लिए बटेश्वर मेले का इंतजार करती थी। आज तक, बटेश्वर मेले में घोड़ों के लिए सबसे अच्छा बाजार है, जैसे पुष्कर मेला ऊंटों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।  बटेश्वर क्यों प्रसिद्ध हैं?  यह देश के दूसरे सबसे बड़े पशु मेले

शिव यात्रा

एक बार भगवान शिव और उनकी पत्नी, पार्वती, वाहन नंदी बैल के साथ बटेश्वर से यात्रा पर निकले। पार्वती जी ने जवान और खूबसूरत सुन्दरी का रूप लिया, जबकि प्रभु बटेश्वरनाथ शिव ने, एक बूढ़े आदमी का रूप ले लिया।. सड़क पर सभी राहगीरों द्वारा एक बूढ़े आदमी और एक युवा महिला की इस अजीब जोड़ी को विस्मय के साथ पर देखा। रास्ते में शिव ने पार्वती जी को बैल की सवारी करने को कहा,पार्वती जी नंदी पर बैठ गयी और शिव जी साथ-साथ चलने लगे। राहगीर व गांववाले ये देख कर आलोचना करने लगे "क्या स्वार्थी औरत है वह युवा और स्वस्थ है और फिर भी वह बूढ़े आदमी को पैदल चलने के लिए मजबूर करते हुए आराम से सवारी कर रही है।" ऐसा सुन कर शिव जी ने कहा ''पार्वती देवी, लोगों आप का मजाक उड़ा रहे हैं. "समझदारी इसी में है की में नंदी पर बैठता हूँ और आप साथ-साथ पैदल चलो।" और शिव जी बैठ गए, आगे जाने पर अन्य राहगीर शिव को कोसने लगे ''ये आदमी मोटा-मजबूत और क्रूर है. इस युवा और सौम्य महिला को पैर पर चलने के लिए मजबूर कर रहा है, जबकि खुद सवारी का आनंद ले रहा है।'' यह सुनकर शिवजी और पार्वती

किंवदंति : लिंग परिवर्तन

हम जानते हैं कि लिंग परिवर्तन की किंवदंति भारतीय लोक कथाओं में अज्ञात नहीं हैं । हमे एक बहुत प्राचीन कथा का समरण हो आता है । ये कथा "इला" की है जो की वैवस्वत-मनु की पुत्री थी । वैवस्वत-मनु ने वरुण भगवान से पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना की,पर उनके एक पुर्त्री का जनम हुआ, क्यों की वैवस्वत-मनु की पत्नी पुत्री चाहती थी,पिता की देवताओं से प्रार्थना के परिणामस्वरूप वह पुत्री, एक पुरुष "सुद्युम्ना" में बदल गई थी और अंत में भगवन शिव उसे फिर से एक स्त्री में बदल दिया और वह उसी रूप में बुद्ध (बुद्धि) की पत्नी बन गई थी । आधुनिक समय में हमें भदावर के भदौरिया राजा की बेटी की बहुत इसी तरह की कहानी सुनने को मिलती है. महाराजा भदावर बदन सिंह भदौरिया और तत्कालीन राजा परमार के साथ घनिष्ठ मित्रता थी । जब उनकी रानियो ने गर्भ धारण किया तब दोनो के बीच समझौता हुआ कि जिसके भी कन्या होगी,वह दूसरे के पुत्र से शादी करेगा, राजा परमार और राजा भदावर दोनो के ही कन्या पैदा हो गई पर राजा भदावर ने अपना वचन पूरा करने के लिए राजा परमार को सूचित कर दिया कि उनके पुत्र पैदा हुआ है । उनकी झूठी

चावल किवदंति !

बटेश्वर मंदिर स्थानीय लोगों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वे सरल ग्रामीण है और उनका इन मंदिरों से जुडी कई अविश्वसनीय किवदंतियों पर विश्वास है। स्थानीय राजपरिवारो में होड़ रहती थी भदावर के राजा भी अपने परंपरागत तीर्थ बटेश्वरनाथ महादेव पर चावल चढ़ाया करते थे। एक बार गोहद के राणा २१ मन चावल से बटेश्वर शिवलिंग को न ढक सके , उसे भदौरिया राजा ने ७ मन चावल से ही ढक दिया था । ऐसा कहा जाता है की राज - परिवार की प्रमुख महिला वर्ष भर एक - एक चावल को शिव प्रार्थना माला के मनकों की भांति इस्तेमाल करती थी और अनाज की बोरी में जमा करती रहती थी जो राजपरिवार इन चावलों से बटेश्वर शिवलिंग को ढक पता था वो ही क्षेत्र के सबसे धर्मपरायण स्त्री का स्वामी होने का दावा कर सकता था। निश्चित ही ये प्रथा स्त्रीयों को साल भर व्यस्त रखने की उक्ति रही होगी। स्थानीय रूप से चावल उगाया नहीं जाता था और महंगा था , किसी चतुर कर पंडित द्वारा इस छोटे से परीक्षण के द्वारा बेहतरीन अनाज की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करली गयी थी। जब औरंगजेब मंदिरों का विनाश करता व मस्जिद बनता हुआ बटेश्वर आया तो यहाँ के कुछ मंदिर नष्ट कर

जय बटेश्वर महादेओ !

बटेश्वर के मंदिर सुबह के सूरज की रौशनी में यमुना में पड़ते अपने प्रतिबिम्ब से एक मोहक चित्रमाला प्रस्तुत करते है ऐसा आइना तो पास ही स्थित विश्व आश्चर्य ताजमहल के पास भी नहीं है पूरा परिदृश्य बेहद सुन्दर और शांतिपूर्ण है ।बटेश्वर में बटेश्वरनाथ महादेव भगवान शिव को समर्पित १०१ मंदिर है स्थानीय लोकगीत और प्राचीन किंवदंतियों में शिव की पूजा एक शानदार बरगद के तहत होती आई है इसीलिए शिव को बट - ईश्वर के रूप में जाना जाने लगा , बटेश्वर को तीर्थो का भांजा और भदावर की काशी कहा जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर्व पर तीर्थ बटेश्वर में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है लाखों श्रद्धालु यमुना में डुबकी लगाकर भोलेबाबा के मंदिर में मत्था टेकने पहुचते है। बटेश्वर के सभी मंदिर खास है पर महत्यपूर्ण मंदिरों में बटेश्वरनाथ मंदिर , गौरीशंकर मंदिर , पातालेश्वर मंदिर , मणीदेव मंदिर आदि है । बटेश्वर नाथ मंदिर कई सदियों से स्थापित है लेकिन अपने मौजूदा रूप में लगभग ३०० वर्ष पुराना है । जर्नल कनिंघम को बटेश्वर में एक शिलालेख मिला था जिसके अनुसार १२१२ अश्वनी शुक्ला पंचमी दिन रविवार को राजा परीमदिर्देव ने ए