श्रावण मास में शिव पूजा का महत्व | बटेश्वरनाथ में जलाभिषेक की महिमा

श्रावण मास में बटेश्वर धाम क्यों जाएं? जानिए शिवलिंग जलाभिषेक की पौराणिक कथा


जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।

तेहि भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस॥

 

यह मंत्र यजुर्वेद के प्रसिद्ध "श्री रुद्राष्टाध्यायी" का अंश है। यह मंत्र भगवान शंकर की स्तुति में है। इसका अर्थ है कि "हे मंद बुद्धि मन, जो भगवान शंकर, देवताओं को जला देने वाले विष को स्वयं पीकर उन पर कृपा करते हैं, तुम उनका भजन क्यों नहीं करते?" 

 

यह दोहा 'रामचरितमानस' से जिसमें भगवान राम के जीवन और गुणों का वर्णन है। यहाँ 'विषम गरल' का अर्थ है भयानक विष और 'कृपाल संकर सरिस' का अर्थ है भगवान शंकर के समान कृपालु। इसका भाव यह है कि भगवान शंकर ने देवताओं को बचाने के लिए स्वयं विषपान किया, वे कितने दयालु हैं। इसलिए, मनुष्य को उनका भजन करना चाहिए। 


श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है। यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता है इसके साथ जुडे़ समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं। शास्त्रों में सावन के महात्म्य पर विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है। श्रावण मास का विशिष्ट महत्व है। श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का अटूट संबंध है। इस मास का प्रत्येक दिन पूर्णता लिए हुए होता है। धर्म और आस्था का अटूट गठजोड़ हमें इस माह में दिखाई पड़ता  है।इस माह की प्रत्येक तिथि किसी किसी धार्मिक महत्व के साथ जुडी़ हुई है। इसका हर दिन व्रत और पूजा पाठ के लिए महत्वपूर्ण है।


हिंदु पंचांग के अनुसार सभी मासों को किसी किसी देवता के साथ संबंधित देखा जा सकता है उसी प्रकार श्रावण मास को भगवान शिव जी के साथ देखा जाता है, इस मास में शिव आराधना का विशेष महत्व है। यह माह आशाओं की पुर्ति का समय होता है जिस प्रकार प्रकृति ग्रीष्म के थपेडों को सहती हुई सावन की बौछारों से अपनी प्यास बुझाती हुई असीम तृप्ति एवं आनंद को पाती है उसी प्रकार प्राणियों की इच्छाओं के सूनेपन को दूर करने हेतु यह माह भक्ति और पूर्ति का अनुठा संगम बनाता है और सभी की अतृप्त इच्छाओं को पूर्ण करता है।


बटेश्वर में जलाभिषेक के साथ पूजन 


भगवान शिव इसी माह में अपनी अनेक लीलाएं रचते हैं इसी महीनें में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, पंचाक्षर मंत्र इत्यादि शिव मंत्रों का जाप शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है। पूर्णिमा तिथि का श्रवण नक्षत्र के साथ योग होने पर श्रावण माह का स्वरुप प्रकाशित होता है। श्रावण माह के समय भक्त शिवालय में स्थापित, प्राण-प्रतिष्ठित शिवलिंग या धातु से निर्मित लिंग का गंगाजल दुग्ध से रुद्राभिषेक कराते हैं. शिवलिंग का रुद्राभिषेक भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. इन दिनों बटेश्वर धाम में शिवलिंग पर गंगा जल द्वारा अभिषेक करने से भगवान शिव अतिप्रसन्न होते हैं


बटेश्वरनाथ शिवलिंग का अभिषेक महाफलदायी माना गया है इन दिनों अनेक प्रकार से  शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है जो भिन्न भिन्न फलों को प्रदान करने वाला होता है जैसे कि जल से वर्षा और शितलता कि प्राप्ति होती है दूग्धा-अभिषेक एवं घृत से अभिषेक करने पर योग्य संतान कि प्राप्ति होती है. ईख के रस से धन संपदा की प्राप्ति होती है कुशोदक से समस्त व्याधि शांत होती है दधि से पशु धन की प्राप्ति होती है ओर शहद से शिवलिंग पर अभिषेक करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है


बटेश्वर में शिवलिंग पर जलाभिषेक का महत्व 


इस श्रावण मास में शिव भक्त ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त करता है तथा शिवलोक को पाता है  शिव का श्रावण में जलाभिषेक के संदर्भ में बटेश्वर धाम में एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार जब देवों ओर राक्षसों ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए सागर मंथन किया तो उस मंथन समय समुद्र में से अनेक पदार्थ उत्पन्न हुए और अमृत कलश से पूर्व कालकूट विष भी निकला उसकी भयंकर ज्वाला से समस्त ब्रह्माण्ड जलने लगा इस संकट से व्यथित समस्त जन भगवान शिव के पास पहुंचे और उनके समक्ष प्राथना करने लगे, तब सभी की प्रार्थना पर भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने हेतु उस विष को अपने कंठ में उतार लिया और उसे वहीं अपने कंठ में अवरूद्ध कर लिया


जिससे उनका कंठ नीला हो गया समुद्र मंथन से निकले उस हलाहल के पान से भगवान शिव भी तपन को सहा अतमान्यता है कि वह समय श्रावण मास का समय था और उस तपन को शांत करने हेतु देवताओं ने गंगाजल से भगवान शिव का पूजन जलाभिषेक आरंभ किया, तभी से यह प्रथा आज भी चली रही है प्रभु का जलाभिषेक करके समस्त भक्त उनकी कृपा को पाते हैं और उन्हीं के रस में विभोर होकर जीवन के अमृत को अपने भीतर प्रवाहित करने का प्रयास करते हैं


नमः शम्भवाय मयोभवाय नमः शंकराय  

मयस्कराय नमः शिवाय शिवतराय ।। 


अर्थ : जो सर्व कल्याणकारी हैं, उन्हें प्रणाम ! जो सभी को सर्वोत्तम सुख देनेवाले हैं, उन्हें प्रणाम ! जो सभी का मंगल करने वाले हैं, उन्हें प्रणामजो सर्व का सत्कार करने  वाले हैं, उन्हें प्रणाम !


जय बटेश्वर नाथ महाराज !

 


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