शिव स्तुति : अनिल कटारा

काल के भी काल शंभु रूप विकराल है
देह में भभूति लेप कंठ माल ब्याल है |
शीश गंग भाल चन्द्र हाथ में त्रिशूल है
डमरू निनाद सृष्टि नाद ब्रह्म रूप है | |

तीन नेत्र तेज पुंज आदि शक्ति संग है
आक हो धतूर बेर भंग भी पसन्द है |
क्रोध ज्वाल भस्म होत देवता अनंग है
आदि अन्त मध्य हीन दिव्य देव अनंत है | |


बेल पत्र पुष्प दूब क्षुद्र भेंट लेत हैं
प्रात होत नाम लेत कष्ट काट देत हैं |
शीघ्र ही प्रसन्न होत शंभु जग रूप हैं
दुष्ट को विनाश कर शान्ति का सरूप हैं | |

नाथ मैं अनाथ प्रभु दु:ख दूर कीजिये
कंट कीर्ण मार्ग नाथ क्लेश हर लीजिऐ |
तेज पुंज आप संग शक्ति मात लीजिऐ
अनिल दीन भाग्य हीन हाथ थाम लीजिऐ | |

अनिल कटारा
बाह, आगरा