बटेश्वर धाम से गहरा नाता है कृष्ण कन्हैया का !

बटेश्वर धाम से गहरा नाता है कृष्ण कन्हैया का !

तीर्थों का भांजा कहे जाने वाले बटेश्वर से कृष्ण कन्हैया का गहरा नाता रहा है। यमुना नदी के तट पर बसे इस तीर्थ स्थल की महाभारत काल में भी मुख्य भूमिका रही है। कुंती व कर्ण ने यहां प्रवास किया था, वहीं पांडवों ने अज्ञातवास का कुछ समय यहां बिताया था। बटेश्वर, में श्रीकृष्ण और उनके पूर्वजों के अनेक चिन्ह मिलते हैं । बटेश्वर धाम ब्रज मंडल का ही भाग है और 84 कोस की परिक्रमा में इसका समावेश है। 


बटेश्वर धाम से गहरा नाता है कृष्ण कन्हैया का !
बटेश्वर तीर्थों का भांजा क्यों है ?

श्री कृष्ण के पिता वसुदेव की जन्मभूमि शौरीपुर बटेश्वर मानी जाती है। शौरीपुर का इतिहास में मथुरा के राजा अहुक के दो पुत्रों में जब राज्य बटा तो उग्रसेन को मथुरा मंडल और देवाक को शूरसैन मंडल मिले, उग्रसेन के सात पुत्र हुए जिनमें जेष्ठ कंस था। अहुक के सात पुत्री हुई जिनमें जेष्ठ देवकी थीं  कंस और देवकी दोनों चचेरे भाई बहन में बहुत प्रेम था। बटेश्वर में के शूरसैन के पुत्र वासुदेव की कंस से घनिष्ट मित्रता थी। कालांतर में कंस ने देवकी का विवाह अपने मित्र वासुदेव से किया और फिर आकाशवाणी और आगे कंस कारागार में कृष्ण जनम की कथा सबको पता है। बहुत कम लोगों को जानकारी है की भगवान श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव व पितामाह शूरसैन शौरीपुर बटेश्वर निवासी थे। इस वजह से भगवन कृष्ण का जन्म उनके मामा कंस के मथुरा स्थित कारागार में हुआ था। 

देवकी की विदाई के समय अगर आकाशवाणी नहीं हुई होती तो भगवान श्रीकृष्ण शायद शौरीपुर बटेश्वर में जन्म लेते, बटेश्वर श्री कृष्ण के पितामह महाराजा सूरसेन की राजधानी थी। देवकी को ब्याहने वसुदेव की बरात यहीं से मथुरा गई थी। विवाह के बाद कंस अपनी बहन देवकी को विदा कर ही रहा था कि तभी भविष्यवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र तेरा काल बनेगा। इस पर कंस ने भयवश बहन देवकी और बहनोई वसुदेव को मथुरा के कारागार में डलवा दिया। अगर ऐसा नहीं होता तो भगवान कृष्ण का जन्म शौरीपुर बटेश्वर में ही हुआ होता।

बटेश्वर में द्वापर युग का प्रमाण मौजूद है। ज्योतिषियों ने कंस के पिता महाराजा उग्रसेन को सलाह दी थी कि कंस उनके राज्य के विनाश का कारण बनेगा। उग्रसेन ने अपने पुत्र को अशुभ नक्षत्र में जन्म लेने के कारण एक काठ के संदूक में रखकर यमुना में बहा दिया था। संदूक बहते-बहते बटेश्वर एक टीले के पास आ लगा था इस टीले का नाम "कंस करार" पड़ा गया, जो आज भी मौजूद है। कंस वध के बाद भगवान कृष्ण छह महीने शौरीपुर बटेश्वर में रहे। कर्ण और कुंती का जन्म भी बटेश्वर में ही हुआ था। शौरीपुर में महाराजा सूरसेन का विशाल जीर्ण-शीर्ण किला आज भी मौजूद है।

बटेश्वर को कर्ण के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है जो कुंती से पैदा हुए थे। यह भगवान कृष्ण के चचेरे भाई नेमिनाथ, अनुइया, और शबरी की भूमि है। बटेश्वर के प्राचीन खण्डहरों में भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न और पौत्र अनुरुद्ध के नाम पर क्रमश: पदमनखेड़ा और औंध खेड़ा नामक गांव आज भी हैं। तीर्थ में भगवान कृष्ण और बलदाऊ द्वारा जहां पर हल चलाया गया था, उस स्थान को अब हलधर का बाग कहा जाता है। बटेश्वर-महात्म्य के अनुसार महाभारत युद्ध के समय बलभद्र विरक्त होकर बटेश्वर धाम तीर्थ यात्रा के लिए आए थे। जरासंध ने जब मथुरा पर आक्रमण किया जिससे शौरीपुर भी उजाड़ हो गया था।

बटेश्वर में ब्रजभाषा के कई कवि हुए हैं। यहाँ के कवि पंडित अवध बिहारी ‘अवधेश’ ने अपने छंद में बटेश्वर का वर्णन इस प्रकार किया है :

सेत सारी रेत की किनारी यमुना की कारी, 

चंद्राकार मंदिरों की छवि अति न्यारी है।

कल-कल कालिंदी रव किंकिणी सों बाजत, 

विहगन के बोल मानो नुपूर धुनि प्यारी है।

पावन पुनीत यज्ञ भूमि लिए आंचल में, 

भूली-सी भ्रमी सी ठाढ़ी कौनसी विचारी है।

ग्राम है बटेश्वर कि बनबाला अलबेली 

किधौ ’अवधेश‘ ये नवेली ब्रजनारी है।


जन्माष्टमी पर शुभकामनाएँ !!

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