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पर्युषण पर्व : जैन पर्व का महत्व और इतिहास

पर्युषण पर्व 2021: जैन पर्व का महत्व और इतिहास

पर्युषण पर्व प्रमुख जैन त्योहारों में से एक है जो हर साल अगस्त-सितंबर के महीने में मनाया जाता है। इस वर्ष यह 4 सितंबर से 11 सितंबर 2021 तक मनाया जा रहा है। यह मूल रूप से भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। संक्षेप में यह त्योहार जैन समुदाय के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि मुसलमान के लिए ईद और हिन्दू के लिए दीवाली। आइए इस त्योहार और इसके महत्व के बारे में और जानेंगे।

Paryushan Parv
Shri Digamber Jain Temple Shauripur

पर्युषण पर्व 2021 तिथि 

इस वर्ष पर्युषण पर्व 04 सितंबर से 11 सितंबर 2021 तक मनाया जा रहा है। भाद्रपद यानी भादो मास की पंचमी तिथि को शुरू होने वाला यह पर्व अनंत चतुर्दशी तिथि तक मनाया जाता है। 

पर्युषण पर्व क्या है?

पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है  "परि" यानी चारों ओर से और "उषण" यानी धर्म की आराधना। यह पर्व महावीर के मूलभूत सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म या कहें  जिओ और जीने दो सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है। जैन श्वेतांबर और दिगंबर समाज के पर्युषण पर्व भाद्रपद मास में मनाए जाते हैं। श्वेतांबर के व्रत समाप्त होने के बाद दिगंबर समाज के व्रत प्रारंभ होते हैं। इस पर्व में जैन अपने 5 मुख्य व्रत करते हैं और ध्यान और प्रार्थना के साथ उपवास करते हैं।

यह पर्व आमतौर पर दिगंबर संप्रदाय द्वारा 10 दिनों के लिए और श्वेतांबर संप्रदाय द्वारा 8 दिनों के लिए मनाया जाता है। यह पर्व संवत्सरी या क्षमवानी के पालन के साथ समाप्त होता है जिसका अर्थ है क्षमा मांगना। पर्युषण पर्व के कोई निर्धारित नियम नहीं हैं और अनुयायियों को उनकी क्षमता और इच्छा के अनुसार व्रत पालन करने की अनुमति है।

पर्युषण पर्व कैसे मनाया जाता है?

पर्युषण पर्व को धीरज पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इस समय में प्रत्येक जैन अनुयायी मूल व्रतों पर जोर देने का प्रयास करता है जिसमे सही ज्ञान, सही विश्वास, सही आचरण का पालन करना होता हैं।  जैन दिगंबर अपने 10 दिनों के उपवास के दौरान पवित्र ग्रंथ व तत्व सूत्र के दस अध्यायों का पाठ करते हैं। छठे दिन वे दिगंबर समुदाय द्वारा धूप दशमी या सुगंध दशमी मनाते हैं। वे मंदिरों में जाते हैं और धूप जलाते हैं। यह समुदाय के अच्छे और बुरे कर्मों का भेद बताता है और उनकी आत्मा की मुक्ति का प्रतीक है।

अनंत चतुर्दशी के दिन, जैन लोग भगवान वासुपूज्य की पूजा करते हैं जो 12वें जैन तीर्थंकर थे। उन्होंने ही मोक्ष प्राप्त किया था।

पर्युषण महापर्व (Paryushan Parv) है। जैन धर्मावलंबी इस पर्व के दौरान मन के सभी विकारों मोह, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या और वैमनस्य से मुक्ति पाने का मार्ग तलाश करते हैं। साथ ही इन विकारों पर विजय पाकर शांति और पवित्रता की तरफ खुद को ले जाने का उपाय ढूंढते हैं। इस पर्व को मनाने वाले अनुयायी भगवान महावीर के बताए नियमों का पालन कर पर्युषण पर्व मनाते हैं। 

अहिंसा (अहिंसा)

आत्म-अनुशासन में संलग्न होना (संयम)

आंशिक या पूर्ण उपवास तपस्या (तपह)

शास्त्रों का अध्ययन (स्वाध्याय)

आत्मनिरीक्षण (प्रतिक्रमण)

पश्चाताप (प्रयासचित्त)

पर्युषण: जैनियों द्वारा मनाया गया तपस


इस दौरान जैनियों द्वारा कुछ तपस भी किये जाते हैं। य़े हैं

साधर्मिक वात्सल्य - अर्थ सभी जैनियों का कल्याण

अमारी प्रवर्तन - अर्थ अहिंसा का पालन 

अत्थामा तप - दस दिन किया जाने वाला उपवास 

चैत्य पारिपति - इसमें मंदिरों की दैनिक यात्रा और पवित्र स्थानों की तीर्थयात्रा शामिल है।

क्षमपान - अर्थ है पर्व के पालन में हुई त्रुटि के लिए क्षमा मांगना।

संवत्सरी -  पर्व का आखिरी दिन जब हर कोई "तस मिचामी दुक्कारम" का पालन यानि क्षमा करना और भूल जाना।

इस प्रकार पर्युषण पर्व  जैन समुदाय में मनाया जाने वाला त्योहार नहीं है, बल्कि अपने धर्म को याद रखने और उसका पालन करने का एक तरीका है।

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