सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

बटेश्वर धाम : भौमवती अमावस्या कब है?

भौमवती अमावस्या कब है?

अमावस्या (Bhaumvati Amavasya ) का दिन हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। यह वह दिन है जिस दिन चंद्रमा पूरी तरह से दिखाई नहीं देता है। बटेश्वर धाम में अमावस्या के दिन भगवान बाबा बटेश्वर नाथ शिव की पूजा की जाती है। भौमवती अमावस्या मंगलवार, 07 सितंबर 2021 को है। सरल शब्दों में यदि अमावस्या का दिन मंगलवार को पड़े तो उस अमावस्या को भौमवती अमावस्या कहा जाता है। भौमवती अमावस्या को 'भौम्य अमावस्या' या 'भोमवती अमावस्या' के नाम से भी जाना जाता है। भदावर की काशी बटेश्वर धाम में यमुना किनारे शिव के 108 मंदिर परिसर में भौमवती अमावस्या पर पितरों को प्रसन्न करने के लिए जन समुदाय उमड़ पड़ता हैं। 

भौमवती अमावस्या
भौमवती अमावस्या - भदावर की काशी बटेश्वर धाम 


भौमवती अमावस्या का महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगलवार के दिन जब चंद्रमा और सूर्य एक ही राशि राशि में प्रवेश करते हैं तो भौमवती अमावस्या योग बन जाता है। मान्यता है कि इस दिन पितरों की पूजा की जाती है।भौमवती अमावस्या के दिन बटेश्वर धाम में स्नान, दान और उपवास का विशेष महत्व है। मान्यता हैं की इस दिन बटेश्वर में यमुना स्नान कर दान करने से अटूट फल मिलता है। ऐसा करने से अक्षय फल मिलते हैं। इस दिन जरूरतमंद लोगों को दान और भोजन देना चाहिए।

भौमवती अमावस्या का दिन मंगल ग्रह की पूजा के लिए समर्पित है और इसलिए किसी की कुंडली के मंगल दोष को दूर करने के लिए बहुत उपयुक्त दिन है। यह दिन दान और पुण्य करने के लिए भी उपयुक्त महूर्त है। भौमवती अमावस्या को बाबा बटेश्वर नाथ धाम में बहुत उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। पितृ दोष और मंगल दोष के उपाय और पूजन विधि अनुसार किया जाता हैं। 

भौमवती अमावस्या पर पितरो को प्रसन्न करें 

भौमवती अमावस्या के दिन मथुरा की काशी बटेश्वर धाम में पितरों की पूजा करने से मनुष्य पितृ ऋण से मुक्ति के उपाय कर लेता है उन्हें पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस दिन पितरों का तर्पण और पिंड दान तथा दान का भी खास मह‍त्व है। साथ ही इस दिन मंगलवार होने के कारण हनुमानजी व मंगलदेव की उपासना करना लाभदायी माना गया है। जो लोग ऋण, कर्ज आदि से परेशान रहते हैं, उन्हें इस भौमवती अमावस्या के दिन  हनुमानजी की विशेषआराधना करनी चाहिए।  

पितरों को प्रसन्न करने के उपाय :

भौमवती अमावस्या के दिन बटेश्वर धाम में स्नान कर मंत्र  'ॐ पितृभ्य: नम:'  का 108 बार जाप करना शुभ फल प्रदान करता है। सूर्य देव को तांबे के लोटे में लाल चंदन और शुद्ध जल से  'ॐ पितृभ्य: नम:' का बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्घ्य देना फलदायी माना जाता है। दक्षिणाभिमुख होकर दिवंगत पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए। पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ मठा,गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करने चाहिए। कर्ज बढ़ जाने के निवारण के लिए ऋणमोचक मंगल स्रोत का पाठ स्वयं या किसी युवा ब्राह्मण सन्यासी से करना चाहिए। 


Best Sellers in Home & Kitchen

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बटेश्वर कार्तिक पूर्णिमा

बटेश्वर कार्तिक पूर्णिमा   कार्तिक हिंदू कैलेंडर में आठवां चंद्र माह है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। बटेश्वर क्षेत्र के आधार पर,  वैष्णव परंपरा में कार्तिक मास को दामोदर मास के नाम से जाना जाता है। दामोदर भगवान कृष्ण के नामों में से एक है।हिंदू कैलेंडर में, कार्तिक सभी चंद्र महीनों में सबसे पवित्र महीना है। कई लोग कार्तिक महीने के दौरान हर दिन सूर्योदय से पहले गंगा और अन्य पवित्र नदियों में पवित्र डुबकी लगाने का संकल्प लेते हैं। कार्तिक माह के दौरान पवित्र डुबकी की रस्म शरद पूर्णिमा के दिन शुरू होती है और कार्तिक पूर्णिमा पर समाप्त होती है।  बटेश्वर पूनम कब की है? हिंदू कैलेंडर में पूर्णिमा के दिन को पूर्णिमा, पूनो, पूनम, पूर्णमी और पूर्णिमासी के रूप में भी जाना जाता है। बटेश्वर पूनम कब की है? बटेश्वर पूनो से तात्पर्य कार्तिक पूर्णिमा से है बटेश्वर पूर्णिमा 2021, 19 नवंबर शुक्रवार की है और बटेश्वर पूर्णिमा 2022, 08  नवंबर मंगलवार की है  कार्तिक पूर्णिमा का क्या महत्व है? बटेश्वर में कार्तिक पूर्णिमा स्नान का बहुत महत्वा है क्योंकि कार्तिक पूर्णिम

बटेश्वर धाम से गहरा नाता है कृष्ण कन्हैया का !

बटेश्वर धाम से गहरा नाता है कृष्ण कन्हैया का ! तीर्थों का भांजा कहे जाने वाले बटेश्वर से कृष्ण कन्हैया का गहरा नाता रहा है। यमुना नदी के तट पर बसे इस तीर्थ स्थल की महाभारत काल में भी मुख्य भूमिका रही है। कुंती व कर्ण ने यहां प्रवास किया था, वहीं पांडवों ने अज्ञातवास का कुछ समय यहां बिताया था। बटेश्वर, में श्रीकृष्ण और उनके पूर्वजों के अनेक चिन्ह मिलते हैं । बटेश्वर धाम ब्रज मंडल का ही भाग है और 84 कोस की परिक्रमा में इसका समावेश है।  बटेश्वर तीर्थों का भांजा क्यों है ? श्री कृष्ण के पिता वसुदेव की जन्मभूमि शौरीपुर बटेश्वर मानी जाती है। शौरीपुर का इतिहास में मथुरा के राजा अहुक के दो पुत्रों में जब राज्य बटा तो उग्रसेन को मथुरा मंडल और देवाक को शूरसैन मंडल मिले, उग्रसेन के सात पुत्र हुए जिनमें जेष्ठ कंस था। अहुक के सात पुत्री हुई जिनमें जेष्ठ देवकी थीं  कंस और देवकी दोनों चचेरे भाई बहन में बहुत प्रेम था। बटेश्वर में के शूरसैन के पुत्र वासुदेव की कंस से घनिष्ट मित्रता थी। कालांतर में कंस ने देवकी का विवाह अपने मित्र वासुदेव से किया और फिर आकाशवाणी और आगे कंस कारागार में कृष्ण जनम की कथा स

बटेश्वर पशु मेला भारत का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है।

भारत में मेलों के इतिहास का पता लगाते हुए हर कोई सहज रूप से बटेश्वर की ओर ही आकर्षित होता है। बटेश्वर यमुना किनारे एक प्राचीन और पौराणिक गांव रहा है, यहाँ बटेश्वर नाथ शिव के 108 मंदिर परिसर यमुना किनारे बना हुआ हैं।  बटेश्वर धाम  जो रामायण और महाभारत के नायकों से जुड़ा रहा है, कृष्ण के पिता वासुदेव के राज्य की राजधानी शौरिपुर यहाँ रही थी। जैनियों का मानना है कि नेमिनाथ का जन्म बटेश्वर में हुआ था। हाल के दिनों में बटेश्वर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पैतृक गांव के रूप में जाना जाने लगा है। बटेश्वर मेला 300 ईसा पूर्व का है जब मौर्यों ने देश पर शासन किया था और परिवहन मुख्य रूप से जलमार्गों के माध्यम से होता था। बटेश्वर व्यापार का एक प्रमुख स्थान था और पशु व्यापार के एक प्रमुख बाजार के रूप में उभरा था। यहां तक कि ब्रिटिश सेना भी उच्च गुणवत्ता वाले घोड़े खरीदने के लिए बटेश्वर मेले का इंतजार करती थी। आज तक, बटेश्वर मेले में घोड़ों के लिए सबसे अच्छा बाजार है, जैसे पुष्कर मेला ऊंटों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।  बटेश्वर क्यों प्रसिद्ध हैं?  यह देश के दूसरे सबसे बड़े पशु मेले