बटेश्वर कार्तिक पूर्णिमा 2023 | कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि | कार्तिक पूर्णिमा में पितृ तर्पण का महत्व

बटेश्वर कार्तिक पूर्णिमा 2023

कार्तिक माह हिंदू कैलेंडर में आठवां चंद्र माह है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। बटेश्वर धाम में  वैष्णव परंपरा के अनुसार कार्तिक मास को दामोदर मास के नाम से जाना भी जाता है। दामोदर भगवान कृष्ण के नामों में से एक है। हिंदू कैलेंडर में, कार्तिक मास सभी चंद्र महीनों में सबसे पवित्र महीना है। कई लोग कार्तिक महीने के दौरान हर दिन सूर्योदय से पहले गंगा और अन्य पवित्र नदियों में डुबकी लगाने का संकल्प लेते हैं। कार्तिक माह के दौरान पवित्र स्नान की रस्म शरद पूर्णिमा के दिन शुरू होती है और कार्तिक पूर्णिमा पर समाप्त होती है। बटेश्वर पूनम कब की है?

Kartik Purnima 2023

कातिक मास शुरू होते ही कार्तिक पूर्णिमा की तिथि (Date of Kartika Purnima), कब है कार्तिक पूर्णिमा (Kartika Purnima), बटेश्वर पूनम कब की है?  ये सभी प्रश्न मुखर हो जाते हैं बटेश्वर पूनो से तात्पर्य बटेश्वर धाम की कार्तिक पूर्णिमा से है।  हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर 2023 सोमवार के दिन बड़े ही धूमधाम से बटेश्वर में मनाई जाएगी। पूर्णिमा के दिन को पूनो, पूनम, पूर्णमी और पूर्णिमासी के रूप में भी जाना जाता है। 

कार्तिक पूर्णिमा महूर्त 

तिथि प्रारम्भ महूर्त  : 26 नवंबर 2023 दोपहर 3:53 शुरू 
तिथि समाप्त महूर्त : 27 नवंबर 2023 दोपहर 2:45 तक 

कार्तिक पूर्णिमा का क्या महत्व है?

बटेश्वर में कार्तिक पूर्णिमा स्नान का बहुत महत्त्व है क्योंकि कार्तिक पूर्णिमा के दिन कई अनुष्ठानों और त्योहारों का समापन होता है। बटेश्वर में कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव प्रबोधिनी एकादशी के दिन से शुरू होता है। एकादशी ग्यारहवां दिन है और पूर्णिमा शुक्ल पक्ष के दौरान कार्तिक मास की पंद्रहवीं तिथि है। बटेश्वर में कार्तिक पूर्णिमा उत्सव पांच दिनों तक चलता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन, नदी स्नान, दीपदान, हवन और यज्ञ करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है। इस दिन अन्न, धन और वस्त्र की दान करने का भी महत्व है, क्योंकि इस दिन किए गए दान का फल अधिक होता है। यह भी माना जाता है कि इस दिन दान करने वाला व्यक्ति स्वर्ग में सुरक्षित रहता है और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष प्राप्त होता है।

कार्तिक पूर्णिमा की विशेषता क्या है ? 

बटेश्वर में तुलसी-विवाह उत्सव प्रबोधिनी एकादशी के दिन से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कार्तिक मास की एकादशी से पूर्णिमा के बीच किसी भी उपयुक्त दिन तुलसी विवाह किया जा सकता है। हालांकि, बटेश्वर के लोग कार्तिक पूर्णिमा के दिन को ही देवी तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह की रस्मों को निभाने के लिए चुनते हैं।

एकादशी के दिन से शुरू होने वाला भीष्म पंचक व्रत कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। बटेश्वर की वैष्णव परंपरा में भीष्म पंचक के कार्तिक मास के अंतिम पांच दिनों के उपवास को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। बटेश्वर में पांच दिनों के इस उपवास को भीष्म पंचक और विष्णु पंचक के रूप में जाना जाता है। बटेश्वर में वैकुंठ चतुर्दशी व्रत की पूजा चतुर्दशी तिथि यानी कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले की जाती है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक चतुर्दशी के दिन शुक्ल पक्ष के दौरान भगवान विष्णु ने भगवान शिव की पूजा की और उन्हें एक हजार कमल के फूल चढ़ाए थे। 

बटेश्वर धाम शिव मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता हैं जिसके दौरान भगवान बटेश्वर नाथ शिव के साथ भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है। वैकुंठ चतुर्दशी के दिन, बटेश्वर के घाट पर सूर्योदय से पहले यमुना में पवित्र डुबकी भगवान शिव के भक्तों के बीच बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को व्रत करने से भगवान शिव और पार्वती का आशीर्वाद मिलता है,और यही कारण है कि इसे 'त्रिपुरी पूर्णिमा' भी कहा जाता है। इस दिन नदी में स्नान करने का विशेष महत्व होता है और लोग यहां बटेश्वर धाम पर आकर्षित होते हैं। यहां आने वाले लोग घाट पर स्नान करते हैं और अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति देने के लिए पितृ तर्पण करते हैं। 

कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि 

शास्त्रों में लिखा है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन, पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान करने और गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र,अयोध्या, बटेश्वर और काशी जैसे धार्मिक स्थलों की यात्रा करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन स्नान करते समय-कुशा और दान देते समय-पानी, और जप की संख्या (108 जप) का संकल्प करना महत्वपूर्ण है। शास्त्रों के नियमों का पालन करते हुए, स्नान करते समय पहले हाथ-पैर धोना चाहिए, फिर जल आचमन करके कुशा पकड़कर स्नान करना चाहिए स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य जरूर दें, और दान देते समय में हाथ में पानी रखकर ही दान दिया जाना चाहिए। यज्ञ और जप करते समय, जप की संख्या का संकल्प करें और फिर जप और यज्ञ करें।

हिंदू शास्त्रों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा की सही पूजा विधि (Kartik Purnima Puja Vidhi) महत्वपूर्ण है । इस पूजा के समय कार्तिक पूर्णिमा के दिन उपवास रखें और यह उपवास सूर्योदय से सूर्यास्त तक रखें। यदि पूजा सही विधि से न की जाय तो उसका लाभ नहीं मिलता :

  1. स्नान (Bathing): सुबह सूर्योदय के समय स्नान करें, स्नान करते समय पहले हाथ-पैर धोना चाहिए, फिर जल आचमन करके कुशा पकड़कर स्नान करना चाहिए स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य जरूर दें। गंगा, यमुना, या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करें। बटेश्वर धाम में कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान का अधिक महत्व है स्नान के समय मंत्र का उच्चारण करें:  "गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु।।"
  2. दीप दान (Lamp Offering): एक दिया-दीपक घी या तिल के तेल में जलाएं। दीपक के सामने गणेश और देवी लक्ष्मी की मूर्तियाँ रखें। पूजा के बाद इस दीपक को दोने में रख जलधारा में प्रवाहित करें। पूजा में इस मंत्र का बार उच्चारण करें: "शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसंपदा। शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते।।"
  3. हवन (Havan): हवन कुण्ड में आम की लकड़ी, लौंग, इलायची, दालचीनी, गुग्गुल और द्रव्यों को रखें। अग्नि को प्रज्वलित करें और मंत्रों के साथ आहुतियाँ दें। यज्ञ हवन के लिए "अग्नि पुराण" से मंत्र प्राप्त कर सकते हैं।
  4. जप (Chanting): कार्तिक पूर्णिमा के दिन, गायत्री मंत्र का 108 बार जप करें: "ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।।"
  5. दान (Donations): भिक्षुकों को भोजन, वस्त्र, और धन दें। दान करते समय हाथ में जल रखे और इस  मंत्र का जप करें:"दत्तं वर्धयाम्यहं कुलं प्राप्नुयां च ते।दत्तं मया दानं नान्यद्देयं प्रजापतेः।।"
  6. पारणा (Fasting and Breaking the Fast): कार्तिक पूर्णिमा के दिन उपवास रखा जाता है और यह उपवास सूर्योदय से सूर्यास्त तक रहता है। पूजा के बाद भोजन करें और उपवास का पारण करें।

कार्तिक पूर्णिमा की पूजा विधि को ध्यानपूर्वक और आध्यात्मिक भावना के साथ करने से इसके महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त होते हैं। ध्यान, श्रद्धा और समर्पण के साथ इस पूजा को करना चाहिए, और उपयुक्त मंत्रों का जप करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

कार्तिक पूर्णिमा में पितृ तर्पण का महत्व 

पितृ तर्पण कार्तिक पूर्णिमा के दिन विशेष महत्वपूर्ण होता है, यहाँ पितृ तर्पण की पूजा विधि (Pitru Tarpan Vidhi) और मंत्रों का उल्लेख किया गया है:पितृ तर्पण (Pitru Tarpan) पितृ तर्पण के लिए पूजा स्थल पर स्नान'कर बैठें। यज्ञोपवीत धारण करें और यज्ञोपवीत से पितरों का तर्पण करें। इस मंत्र का जप करते समय पितरों के नाम का उल्लेख करें: "अकर्मकृत् यदकर्मं परकर्म यद्नियतं। यत्सर्वं परvaशिष्याति यद्नं तेन तेन।।"  पितृ तर्पण के बाद, काले तिल और जल का दान करें। इस मंत्र का जप करते हुए दान करें: "यदाहं कुरुते पुण्यं तद्दद्दत्तममुत्तमम्। तस्माद्दानमुत्तमं तत्तिलदानं परं स्मृतम्।।"

कार्तिक पूर्णिमा को पितृ तर्पण करने से पितरों को शांति प्राप्त होती है । इस पूजा को समर्पण और भक्ति के साथ करने से अधिक लाभ होता है।

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