भारत में मेलों के इतिहास का पता लगाते हुए हर कोई सहज रूप से बटेश्वर की ओर ही आकर्षित होता है। बटेश्वर यमुना किनारे एक प्राचीन और पौराणिक गांव रहा है, यहाँ बटेश्वर नाथ शिव के 108 मंदिर परिसर यमुना किनारे बना हुआ हैं। बटेश्वर धाम जो रामायण और महाभारत के नायकों से जुड़ा रहा है, कृष्ण के पिता वासुदेव के राज्य की राजधानी शौरिपुर यहाँ रही थी। जैनियों का मानना है कि नेमिनाथ का जन्म बटेश्वर में हुआ था। हाल के दिनों में बटेश्वर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पैतृक गांव के रूप में जाना जाने लगा है।बटेश्वर मेला 300 ईसा पूर्व का है जब मौर्यों ने देश पर शासन किया था और परिवहन मुख्य रूप से जलमार्गों के माध्यम से होता था। बटेश्वर व्यापार का एक प्रमुख स्थान था और पशु व्यापार के एक प्रमुख बाजार के रूप में उभरा था। यहां तक कि ब्रिटिश सेना भी उच्च गुणवत्ता वाले घोड़े खरीदने के लिए बटेश्वर मेले का इंतजार करती थी। आज तक, बटेश्वर मेले में घोड़ों के लिए सबसे अच्छा बाजार है, जैसे पुष्कर मेला ऊंटों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।
बटेश्वर क्यों प्रसिद्ध हैं? यह देश के दूसरे सबसे बड़े पशु मेले के रूप में प्रसिद्ध है।
बटेश्वर मेला कहाँ लगता है?
बटेश्वर धाम भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में यमुना नदी के किनारे आगरा जिले का एक ऐतिहासिक गाँव है। बटेश्वर धाम आगरा और इटावा के बीच में है तहसील बाह से 05 किमी दूर है। यह दिल्ली से लगभग 04 घंटे की ड्राइव पर है। बटेश्वर मेले का आयोजन आगरा से लगभग 70 किमी0 की दूरी पर स्थित बाह तहसील में प्रसिद्ध पौराणिक धार्मिक स्थल बटेश्वर धाम में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है, जो पूरे एक माह चलता है। बटेश्वर धाम में बटेश्वर नाथ भगवान शिव के 108 मन्दिर यमुना नदी के किनारे बटेश्वर के राजा महाराज बदन सिंह ने बनवाये थे। इस 108 बटेश्वर नाथ मंदिर परिसर के आसपास के खुले क्षेत्रों में वार्षिक पशु मेला का आयोजित किया जाता है।
• स्थान: आगरा, तहसील बाह, बटेश्वर, उत्तर प्रदेश 283104
• निकटतम रेलवे स्टेशन: शिकोहाबाद रेलवे स्टेशन बटेश्वर से 12 किमी की दूरी पर है।
• निकटतम हवाई अड्डा: बटेश्वर से 90 किमी की दूरी पर पंडित दीन दयाल उपाध्याय हवाई अड्डा, आगरा।
बटेश्वर का मेला कब लगेगा?
बटेश्वर मेला सर्वप्रथम वर्ष 1646 में महाराजा बदन सिंह भदौरिया के द्वारा बटेश्वर में यमुना किनारे 108 मंदिर परिसर में आयोजित किया गया था। तभी से बटेश्वर मेला हर वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष दूज से प्रारंभ होता है और अगहन मास की पंचमी तक चलता है। बटेश्वर मेला आयोजन की सटीक तिथियां चंद्र कैलेंडर पर निर्भर करती हैं और हर साल बदलती हैं। बटेश्वर मेला अक्टूबर और नवंबर के महीने में लगभग तीन सप्ताह की अवधि के लिए दीपावली से कुछ दिन पहले शुरू होता है। दीपावली के एक सप्ताह पूर्व पशु मेला और दीपावली के एक सप्ताह बाद धार्मिक मेला लगता है। वर्ष 2020 कोविड महामारी दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए ऐतिहासिक बटेश्वर मेले के आयोजन की अनुमति नहीं दी गई थी। अगला बटेश्वर मेला कब है? वर्ष 2021 में बटेश्वर मेले की तिथि इस प्रकार रहेगी :-
बटेश्वर मेला 2021 पशु मेला 01 नवंबर 2021 से 07 नवंबर 2021
बटेश्वर मेला 2021 धार्मिक' मेला 16 नवंबर 2021 से 23 नवंबर 2021
बटेश्वर मेला 2022 पशु मेला 21 अक्टूबर 2022 से 21 अक्टूबर 2022
बटेश्वर मेला 2022 धार्मिक' मेला 05 नवंबर 2022 से 12 नवंबर 2022
बटेश्वर पशु मेला
बटेश्वर नाथ शिवजी का एक नाम पशुपति भी है, बटेश्वर पशु मेला इसे सार्थक करता है। बटेश्वर पशु मेला पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है और सबसे पुराना पशु मेला है पुष्कर मेले से भी पुराना। बटेश्वर पशु मेला भारत का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है पहला सोनभद्र बिहार में आयोजित होता है। किसी समय इस मेले में बर्मा के हाथी, पेशावर के ऊँट और काबुल के घोड़े बिकने आते थे। बटेश्वर पशु मेला तीन चरणों में आयोजित होता है। पहले चरण में ऊँट, घोड़े और गधों की बिक्री होती है, दूसरे चरण में गाय आदि अन्य पशुओं की तथा अंतिम चरण में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। मेला शुरू होने के एक सप्ताह पहले से ही पशु-व्यापारी अपने पशु लेकर यहां पहुँचने लगते हैं। बटेश्वर पशु मेला मुख्य रूप से घोड़े के लिए प्रशिद्ध रहा हैं। अच्छे भारतीय नस्ल के घोड़ों को खरीदने या बेचने के लिए लोग मीलों यात्रा कर यहाँ पहुंचते हैं। मेले का माहौल काफी रंगीन होता है। इस मेले में देश भर से सैकड़ों और हजारों मवेशी जैसे भैंस, गाय, ऊंट, हाथी, बकरी और गधे लाए जाते हैं। बटेश्वर पशु मेले में विभिन्न पक्षियों और पालतू जानवरों की प्रजातियों को भी देखा जा सकता है। ये आम तौर पर बिक्री के लिए होते हैं, और मेले में पशु मालिकों और खरीदारों के बीच गंभीर व्यवसाय होता हैं। मेला सभी के लिए खुला होने के कारण दुनिया भर से पर्यटक यहां आते हैं। दर्शकों के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। मेले में पशुओं की विभिन्न प्रकार की दौड़ों का आयोजन भी किया जाता है। हॉर्स शो यहाँ का मुख्य आकर्षण हैं।
बटेश्वर धार्मिक मेला
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुण्ठ चतुर्दशी या ग्रामीण भाषा में बैकुंठ चौदस कहा जाता है। बटेश्वर स्नान पर्व और बैकुंठ चौदस के मौके पर पितरों की आत्मशांति के लिये सैंकड़ों की संख्या में लोग यमुना में जलते दीप दान किये जाते हैं बैकुंठ चौदस पर दीपदान करने से पूर्वजों को स्वर्ग की राह में प्रकाश दिखाई देता है। पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के लिये बैकुंठ चौदस को पांच जलते हुये दीये यमुना में विसर्जित किये जाते हैं और साथ ही एक दीपक पंचमुखी महादेव मंदिर पर जलाया जाता हैं। बटेश्वर धार्मिक मेला में कुछ ग्रामीण उत्पादों की एक विस्तृत विविधता जैसे बर्तन, रंगीन स्कार्फ और पारंपरिक कपड़े की उपलब्धता रहती हैं। किसी भी मेले की तरह बटेश्वर मेला भी आगंतुकों को खाने-पीने के स्टॉल पर तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन मिलते हैं। खाने के शौकीन लोगों के लिए मेले में बहुत कुछ है। मेले में दूध से बनी चीजें बिकती हैं। आगरा का प्रसिद्ध पेठा या लौकी का कलाकंद यहाँ बड़ी मात्रा उपलब्ध रहता हैं। बटेश्वर की गुझिया, खोटिया, बताशा और शक्कर-पारे प्रसिद्ध हैं। इस मेले में खिलौने भी बेचे जाते हैं और वे अपनी थीम पशु मेले से लेते हैं। कई स्टालों में मिट्टी के बरतन, लकड़ी के खिलौने और लाख की चूड़ियाँ भी बिकती हैं। लकड़ी के खिलौने के रूप में जानवरों और मानव मूर्तियां भी उपलब्ध होती हैं। एक ग्रामीण शापिंग माल देखना हों तो यहां आइए। सच मानिए यदी आप ने कभी कोई गांव का बडा मेला नहीं देखा तो ठेट ग्रामिण भारत को समझना आप के लिये मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। यहां ऐसा कौन सा जरूरत का सामान है जो नहीं मिलता।
Bateshwar Animal Fair |