एक बार भगवान शिव और उनकी पत्नी, पार्वती, वाहन नंदी बैल के साथ बटेश्वर से यात्रा पर निकले। पार्वती जी ने जवान और खूबसूरत सुन्दरी का रूप लिया, जबकि प्रभु बटेश्वरनाथ शिव ने, एक बूढ़े आदमी का रूप ले लिया।. सड़क पर सभी राहगीरों द्वारा एक बूढ़े आदमी और एक युवा महिला की इस अजीब जोड़ी को विस्मय के साथ पर देखा।
रास्ते में शिव ने पार्वती जी को बैल की सवारी करने को कहा,पार्वती जी नंदी पर बैठ गयी और शिव जी साथ-साथ चलने लगे। राहगीर व गांववाले ये देख कर आलोचना करने लगे "क्या स्वार्थी औरत है वह युवा और स्वस्थ है और फिर भी वह बूढ़े आदमी को पैदल चलने के लिए मजबूर करते हुए आराम से सवारी कर रही है।" ऐसा सुन कर शिव जी ने कहा ''पार्वती देवी, लोगों आप का मजाक उड़ा रहे हैं. "समझदारी इसी में है की में नंदी पर बैठता हूँ और आप साथ-साथ पैदल चलो।" और शिव जी बैठ गए, आगे जाने पर अन्य राहगीर शिव को कोसने लगे ''ये आदमी मोटा-मजबूत और क्रूर है. इस युवा और सौम्य महिला को पैर पर चलने के लिए मजबूर कर रहा है, जबकि खुद सवारी का आनंद ले रहा है।''
यह सुनकर शिवजी और पार्वती दोनों बैल पर चढ़ गए, कम से कम, इन आलोचनाओं से छुटकारा मिलेगा लेकिन वे गलत थे और जैसे ही वे अगले गांव में पहुचे लोगों व्यंगात्मक मुस्कान के साथ चुटकी लेने लगे ''इस निर्लज दम्पति को देखो दोनों निर्दयता से बैल पर चढ़े बेठे है ये इस गरीब प्राणी को मार ही डालेगे।''
अब केवल एक ही विकल्प था। वे बैल से उतर गए और दोनों नंदी के साथ-साथ पैदल चलने लगे, राह में नए लोगों से मुलाकात हुई वे उन पर हंस रहे थे कुछ कहने लगे "क्या मूर्ख है वाहन के रूप में एक बैल ले लिया है और उपयोग नहीं कर रहे है।''
अब शिव जी ने पार्वती जी से कहा की दुनिया की आलोचना-सराहना की परवाह न करते हुए हमें जो ठीक लगे वही करना चाहिए। इस दुनिया में, हम कोई काम अच्छा भले ही करे वह सबको पसंद नहीं आएगा और ना ही सब समर्थन करेंगे। समस्या यह है,कि हमारी दुनिया की प्रकृति यही है. एक साधु चमत्कार दिखाता है तो लोग कहते है ''वह काले जादू करता है और बुरी शक्तियों का उपासक है।'' और एक साधु चमत्कार से बचाता है, तो कुछ शिकायत करते है ''वह कोई चमत्कार नहीं कर सकता वह साधारण है और किसी काम का नहीं है।'' यह हमारी दुनिया की मानसिकता है जो कुछ भी आप करे उसमें दोष निकाला ही जाएगा। दुनिया वाले आप को सीधे कभी नहीं देखेंगे। इसलिए, सांसारिक लोगों के शब्दों पर ध्यान नहीं देते हुए श्रद्धापूर्वक भगवान की पूजा जारी रखे।