बटेश्वर के मंदिर सुबह के सूरज की रौशनी में यमुना में पड़ते अपने प्रतिबिम्ब से एक मोहक चित्रमाला प्रस्तुत करते है ऐसा आइना तो पास ही स्थित विश्व आश्चर्य ताजमहल के पास भी नहीं है पूरा परिदृश्य बेहद सुन्दर और शांतिपूर्ण है ।बटेश्वर में बटेश्वरनाथ महादेव भगवान शिव को समर्पित १०१ मंदिर है स्थानीय लोकगीत और प्राचीन किंवदंतियों में शिव की पूजा एक शानदार बरगद के तहत होती आई है इसीलिए शिव को बट-ईश्वर के रूप में जाना जाने लगा, बटेश्वर को तीर्थो का भांजा और भदावर की काशी कहा जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर्व पर तीर्थ बटेश्वर में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है लाखों श्रद्धालु यमुना में डुबकी लगाकर भोलेबाबा के मंदिर में मत्था टेकने पहुचते है। बटेश्वर के सभी मंदिर खास है पर महत्यपूर्ण मंदिरों में बटेश्वरनाथ मंदिर, गौरीशंकर मंदिर,पातालेश्वर मंदिर,मणीदेव मंदिर आदि है ।
बटेश्वर नाथ मंदिर कई सदियों से स्थापित है लेकिन अपने मौजूदा रूप में लगभग ३०० वर्ष पुराना है । जर्नल कनिंघम को बटेश्वर में एक शिलालेख मिला था जिसके अनुसार १२१२ अश्वनी शुक्ला पंचमी दिन रविवार को राजा परीमदिर्देव ने एक स्वेत भव्य मंदिर बनवाया था । मुग़ल साम्राज्य काल में हिन्दू धर्म-स्थानों पर कहर बरपा तो बटेश्वर भी अछुता न रहा, अलाउदीन खिलजी ने बटेश्वर लूटा और औरंगजेब ने यहाँ के मंदिरों को ध्वस्त किया अफरा-तफरी का समय गुजरने के बाद राजा बदन सिंह भदौरिया ने हिन्दू समाज की पुनर जन्म की आस्था को सार्थक साबित करते हुए इस मंदिर का पुनरुद्धार कराया जो हिंदू भक्ति के महत्व का एक शानदार उदाहरण है।
आज भक्तों द्वारा कामना पूर्ति होने पर आभार स्वरुप भगवान शिव को चढ़ाये गए छोटे, बड़े और विशाल घंटे इस मंदिर की एक विशिष्ट विशेषता है, यहाँ दो किलो से लेकर अस्सी किलो तक के पीतल के घंटे जंजीरों से लटके है। मंदिर के गर्भगृह में घंटी की मधुर ध्वनि, यजकों और भक्तों के मंत्र उचारण व मिट्टी के दर्जनों दीयों की टिमटिमाती रोशनी और धूप की सुगंध से मंत्रमुघ होकर देविक-निद्रावस्था का अनुभव होता है।
गौरीशंकर मंदिर में भगवान शिव, पार्वती और गणेश की एक दुर्लभ जीवन आकार मूर्ति है साथ ही नंदी भी है, सामने दिवार पर मयूर-आसीन भगवन कार्तिकें और सात घोड़ो पर सवार सूर्य की प्रतिमाये है एक शिलालेख के अनुसार १७६२ ई. में मूर्ति की स्थापना हुई शिव को मुछों और डरावनी अंडाकार आँखों के साथ चित्रित किया गया है।
पातालेश्वर मंदिर पातालेश्वर मंदिर का निर्माण, पानीपत के तीसरे युद्ध (१७६१ ई.) में वीरगति को प्राप्त हुए हजारों मराठों की स्मृति में, मराठा सरदार नारू शंकर ने कराया था। शिव को समर्पित इस विशाल मंदिर की दीवारों पर ऊँची गुंबददार छत है तथा इसका गर्भगृह रंगीन चित्रों से सुसज्जित है। गर्भगृह के सामने कलात्मकता से चित्रित एक मंडप है इस मंदिर में एक हजार मिट्टी के दीपकों का स्तंभ है जिसे सहस्र दीपक स्तंभ कहा जाता है।
मणीदेव मंदिर भी आकर्षण का केंद्र है इसमें आल्हा-उदल के देव मणीखे की मनहोर प्रतिमा है ये प्रतिमा कसौटी पत्थर की है जो पास से साधारण लगती है पर जैसे-जैसे दूर हटते जाते है तो इस में शिवलिंग व मणी दमकती जाती है।
भदावर में लोकविश्वास है की सभी तीर्थो की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती, जब तक की बटेश्वर में पूजा का जल न चढ़ाया जाए। आदि काल से ही बटेश्वर शिव तीर्थ रहा है 'गर्गसहिंता' में कहा गया है की श्रावण-शुक्ला और महाशिवरात्रि पर यमुना स्नान करने पर अक्षय पुण्य मिलता है। जय बटेश्वर नाथ महादेओ !